टोल नाकों पर पांच प्रतिशत टैक्स बढ़ोतरी : आखिर जरूरत क्या थी ?

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

Jun 4, 2024 - 05:11
Jun 4, 2024 - 05:12
टोल नाकों पर पांच प्रतिशत टैक्स बढ़ोतरी : आखिर जरूरत क्या थी ?

केंद्र सरकार को वैसे भी इस वित्त वर्ष में अपने निर्धारित लक्ष्य से अधिक टोल टैक्स मिलना था, फिर भी पांच प्रतिशत की बढ़ोतरी बहुत आश्चर्य में डालनेवाली है। देश का आम नागरिक जिसने चार पहिए का वाहन खरीद लिया है और कई बार मजबूरी में एक या दो लोगों को लेकर सफर करने के लिए विवश है, उसकी जेब टोल टैक्स के नाम पर खाली करवाना कहां तक उचित कहलाएगा? अब यदि 400 किलोमीटर की यात्रा तय करने के लिए 700 रुपये से भी अधिक देना पड़े, जिसमें कि नई व्यवस्था में 5 प्रतिशत बढ़ाते हुए अतिरिक्त रुपये और देना होंगे, तब जरूर विचार करें कि केंद्र सरकार की इस बढ़ोतरी पर प्रश्न क्यों नहीं खड़े किए जाएं ?



वास्तव में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने 04 जून से देशभर में टोल दरों में औसतन 5 फीसदी बढ़ोतरी की घोषणा कर सभी को चौकाया है। जिसमें कि कहा जा रहा है कि संशोधित दरें पहले 01 अप्रैल से प्रभावी होने वाली थीं, किंतु लोकसभा चुनाव के कारण इन्हें टाल दिया गया। अब प्रश्न भी है कि क्यों टाला गया ? क्या इसलिए टाला गया क्योंकि सातवें और अंतिम फेज में उत्तर प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीट वाराणसी पर भी वोटिंग होना थी, जहां से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीसरी बार चुनाव लड़ा है? या फिर इसलिए क्योंकि देश के 8 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की 57 सीटों पर एक जून को मतदान होना था, यदि यह टोल टैक्स पहले से घोषित कर देते तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संगठन भाजपा को हो सकता है चुनाव मतदान में बड़ा नुकसान उठाना पड़ता ! क्योंकि चुनाव यहां किसी एक राज्य में नहीं हो रहे थे, बल्कि उत्तर प्रदेश की 13, पंजाब की सभी 13, बिहार की 8, हिमाचल प्रदेश की 4, झारखंड की 3, पश्चिम बंगाल की 9 और ओडिशा की 6 सीटों पर वोट डाले जाने थे।



भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को लगता होगा कि यदि फिर भी भाजपा सत्ता में आ गई तो उनकी बुरी गत कर देगी। इसलिए अभी रुपये न बढ़ाकर चुनाव बाद इसे लागू करेंगे। अधिकारियों को यह क्यों नहीं लगा कि हर कोई एक बड़ी रकम टोल की चुकाने में सक्षम नहीं होता है। वैसे भी अनेक प्रकार के टैक्स सरकार ने पहले ही लगा रखे हैं। जीएसटी के कारण पूर्व से ही सरकार की झोली लगातार रिकार्ड धनराशि के साथ बढ़ रही है। फिर टोल पर टैक्स बढ़ाने की जरूरत क्या थी? जीएसटी के नाम से एक कर की बात करनेवाली केंद्र की सरकार अभी तक तेल कीमतों पर इसे लागू नहीं कर सकी है? टोल पर राहत नहीं तो पेट्रोल में ही सरकार राहत दे देती! अगर पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है, तो फिर पेट्रोल-डीजल के दाम मौजूदा कीमत से काफी कम हो जाएंगे ।



उदाहरण के तौर पर आप समझ सकते हैं कि यदि दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल भरवाने के लिए 94.72 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं तो इसमें 35 रुपये के करीब टैक्स है, जिसमें लगभग 20 रुपये केंद्र सरकार को और 15 रुपये राज्य सरकार के पास जाते हैं। यहां केंद्र को एक्साइज ड्यूटी के जरिए कमाई होती है तो वहीं, राज्य सरकारें अपने-अपने हिसाब से वैट लगाकर कमाई करती हैं । इसलिए प्रत्येक राज्य में तेल कीमतें अलग हैं । वर्तमान में पेट्रोल और डीजल पर सरकारें 60 फीसदी से भी ज्यादा टैक्स वसूल रही हैं। ऐसे में अगर पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है, तो सरकार अधिकतम 28 फीसदी की दर से ही टैक्स लगा पाएगी, जिसका परिणाम यह होगा कि पेट्रोल-डीजल के दाम एक दम से घट जाएंगे।



दिल्ली में एक्साइज ड्यूटी और वैट को मिलाकर जो 1 लीटर पेट्रोल 94.72 रुपये का मिल रहा है जब उस पर सिर्फ 28 फीसदी जीएसटी लगाया जाएगा, तो उसकी कीमत 70 रुपये के करीब आ जाएगी। इसी तरह से डीजल की कीमत भी कम होगी। यदि केंद्र की सरकार को और अधिक रुपयों की टैक्स कलेक्शन की आवश्यकता है तो वह इसके अलावा भूमि, शराब, उत्खनन जैसे अन्य कई क्षेत्र हैं, जहां राज्य अपने मनमुताबिक वसूली करते हैं। उनकी भी डारेक्ट वसूली करना आरंभ कर दे। किंतु वास्तविकता यही है कि केंद्र में कोई भी सरकार रहे, वह ऐसा कभी नहीं कर सकती, अन्यथा लोकतंत्र में जो केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा और परस्पर का समन्वय है, वह आपस में टकराकर समाप्त हो जाएगा। सच यही है कि दोनों की अपनी-अपनी जरूरतें हैं और राजनेताओं एवं उनकी पार्टी के अपने हित, जिसके चलते वह ऐसा कभी नहीं करेगी । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जहां मनमर्जी होगी केंद्र सरकार इस तरह से टैक्स पर बढ़ोतरी करती रहेगी।



कहना होगा कि केंद्र की सरकार ने एक झटके में हर दिन करोड़ों की कमाई की जुगत टोल नाकों के माध्यम से कर ली है। जोकि वास्तविकता में कहीं से भी न्याय संगत नहीं लगती । आज यह भी एक बड़ा प्रश्न है, जब देश में 80 करोड़ जनता को अनाज योजना से फ्री में राशन बांटा जा रहा है, या इसी प्रकार की अन्य तमाम योजनाएं फ्री की देश में संचालित हैं, क्या कभी वास्तविकता में सर्वे होता है कि वह जिसे इन योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है, वह इनका लाभ लेने के लिए वास्तविक हकदार है? या फिर जो चार पहिए का वाहन खरीदकर चला रहा हैं, जोकि आपका टैक्सपेयर है, उसी की बार-बार सरकार पूरी तरह से जेब खाली करवाने पर भरोसा करती है?



वैसे भी फास्टटैग को अपनाने में वृद्धि, स्वस्थ यातायात वृद्धि और टोलिंग सड़कों में वृद्धि से समर्थित, वित्त वर्ष 24 में ₹64,800 करोड़ (FY23: ₹48,000 करोड़) तक राजस्व वृद्धि में सहायता केंद्र की सरकार को मिली है, जो सरकार के ₹55,000 करोड़ के लक्ष्य को पार कर चुकी है । इसमें कहा गया है कि वित्त वर्ष 2025 में राजस्व 70,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। फिर यह निर्णय लेना निश्चित ही समझ के परे है। अच्छा तो यही होगा कि सरकार इस निर्णय को वापस ले ।एजेन्सी 

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