पत्थरदिल पाठा और सुरों की ट्यून
संदीप रिछारिया

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड का पाठा इलाका सदियों से भूख और प्यास के लिए अभिशप्त रहा है। जल-जंगल-जमीन और दस्यु समस्या से यह इलाका सुलगता रहा है। इस इलाके की कई पीढ़ियों ने पेट की आग को शांत करने के लिए बेगार के साथ बंधक जिंदगी जी है। पुलिस और डाकुओं के शोषण के शिकार आदिवासी और अन्य लोग अब भी अपना दर्द सुनाते मिल जाते हैं। सुखद यह है कि इस पथरीले पाठा की नई पीढी की जिंदगी को सुखमय, सुशिक्षित और सुसंस्कृत बनाने के लिए 'पाठा के गांधी' गोपाल भाई नए सिरे से उनके सुरों को ट्यून करने का अभिनव प्रयोग कर रहे हैं।
तपस्वी भगवान राम की पहुनाई करने वाले कोल-भीलों की पीढी के व्यक्तित्व को बदलने का काम अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के मुख्य कार्यालय भारत जननी परिसर में इन दिनों चल रहा है। पाठा के जंगलों के सुदूर गांवों से आईं 35 किशोरियों को सुखमय जीवन जीने की कला सिखाने काम संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई कर रहे हैं। गोपाल भाई के प्रयासों से पाठा अब काफी बदल रहा है। वह और उनके संस्थान के कर्मयोगी इस क्षेत्र में करीब चार दशक से सक्रिय हैं।
गोपाल भाई कहते हैं यह शिविर 35 बेटियों के साथ पांच मई को यूके के अग्रवाल फाउंडेशन के सहयोग से प्रारंभ किया गया। इस शिविर में उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग तकनीकी सहयोग कर रहा है। विभाग ने आदिवासी बालिकाओं को कथक सिखाने के लिए उदीयमान कथक कलाकार आकांक्षा पांडेय और नाटक सिखाने के लिए रंगकर्मी रोजी मिश्रा को भेजा है। दो जून को शाम पांच बजे से सात बजे तक भारत जननी परिसर के मंच पर बालिकाएं 'वनवासियों के राम' नाट्य की प्रस्तुति देंगी। साथ ही कथक नृत्य में तीन ताल और ठुमरी पर बेजोड़ मेल देखने को मिलेगा।
इस सांस्कृतिक शिविर में हाईस्कूल से लेकर स्नातक तक की बेटियां भाग ले रही हैं। इसका उद्देश्य उनमें सुखमय और स्वस्थ जीवन जीने की कला विकसित करना है। संस्थान मुख्य रूप से उनमें अनुशासित जीवन जीने के लक्षण पैदा करने का प्रयास कर रहा है। गोपाल भाई का कहना है कि क्योंकि यह भविष्य की मातायें हैं। इसलिये हम इन्हें व्यवस्थित दिनचर्या से बांधने का काम कर रहे हैं, ताकि उनकी संतान भी व्यवस्थित दिनचर्या में बंधकर देश के सुयोग्य नागरिक बन देश के उत्थान में सहयोग करें।
इस शिविर में किशोरियों की दिनचर्या सुबह पांच बजे शुरू हो जाती है। नहा-धोकर सभी साढे पांच बजे हवन और पूजन के साथ प्रार्थना करती हैं। इस दौरान प्रेरणा गीत, ग्राम गीत और प्रेरणास्पद सुविचारों को उच्चारण किया जाता है। इसके बाद नाट्य प्रशिक्षण शुरू होता है। इंडोर गेम्स, स्वाध्याय, संगीत गायन, वादन व समाचार पत्र पाठन के साथ अन्य गतिविधियां होती हैं। श्रमदान के रूप में भागवत वाटिका के पौधों की देखभाल व परिसर में सफाई इत्यादि का काम होता है। दोपहर में विश्राम के साथ ही शाम के सत्र में कथक प्रशिक्षण दिया जाता है। इन ग्रामीण बालिकाओं का कहना है कि घरों में उनके जीवन में अनुशासन नहीं था। यहां नई चीजें सीखने को मिल रही हैं। अनुशासन का महत्व अब समझ में आया है। यहां से घरों पर लौटने के बाद अनुशासित जीवन जीने का प्रयास करेंगे। संस्थान के प्रमुख राष्ट्रदीप का कहना है कि यह देखकर अच्छा लगता है कि सभी बड़े मनोयोग से जीवन के जरूरी अध्याय को गहन अनुभूति के साथ समझ रही हैं।एजेंसी
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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