हरियाणा के सिरसा जिले के जगमालवाली स्थित मस्ताना शाह बलोचिस्तान आश्रम के संत महाराज बहादुर चंद वकील साहब का एक अगस्त को निधन हो गया था। आज उनकी अंतिम अरदास आयोजित हो रही है, जिससे प्रशासन की चिंताएं बढ़ गई हैं। इसका मुख्य कारण गद्दी पर दो पक्षों का दावा है। डेरे के प्रमुख के अंतिम संस्कार के दौरान दोनों पक्षों में गोलीबारी हो चुकी है, जिससे पगड़ी रस्म के दौरान भी हिंसा की आशंका जताई जा रही है। इस स्थिति को देखते हुए पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा कर दिया है और सिरसा में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। यह डेरा हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली आदि राज्यों में फैले अनुयायियों के बीच लोकप्रिय है।
हिंसा की संभावनाओं को देखते हुए डेरा जगमालवाली के आसपास पुलिस बल की तैनाती बढ़ा दी गई है, जिसमें पड़ोसी जिलों से भी पुलिस बल बुलाया गया है। कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस ने तैयारी की है, और सीआईडी भी इस मामले पर नजर रख रही है। सिरसा में आठ अगस्त की रात 12 बजे तक इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं।
डेरे के संत वकील साहब के निधन के बाद गद्दी को लेकर विवाद पैदा हो गया है। जिस दिन उनका शव डेरे में लाया गया, उसी दिन से दो पक्षों के बीच विवाद शुरू हो गया था, और वहां फायरिंग भी हुई थी। हिंसा को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने हल्का बल प्रयोग किया था, लेकिन अभी तक गद्दी के उत्तराधिकारी का निर्णय नहीं हो पाया है। कुछ अनुयायियों ने वकील साहब की मौत की सीबीआई जांच की मांग की है।
वकील साहब के निधन के बाद, डेरे के मुख्य सेवक और सूफी गायक महात्मा बीरेंद्र सिंह वसीयत के आधार पर गद्दी का दावा कर रहे हैं। दूसरी ओर, डेरा प्रमुख के भतीजे अमर सिंह वसीयत को संदेहास्पद मानते हुए दावा कर रहे हैं कि वकील साहब की मौत 21 जुलाई को ही हो गई थी, लेकिन उनकी मौत की जानकारी जानबूझकर छिपाई गई थी। अमर सिंह का आरोप है कि गद्दी पर कब्जा जमाने के लिए यह सब किया गया और एक अगस्त को उनकी मौत की घोषणा करके तुरंत अंतिम संस्कार की योजना बनाई गई। अमर सिंह इसके लिए बीरेंद्र सिंह को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वहीं, महात्मा बीरेंद्र सिंह के समर्थक शमशेर सिंह लहरी का कहना है कि वकील साहब ने डेढ़ साल पहले ही बिना किसी दबाव के वसीयत महात्मा बीरेंद्र सिंह के नाम की थी, जिसके अनुसार वही डेरे के उत्तराधिकारी हैं। लेकिन पहला पक्ष इसे मानने के लिए तैयार नहीं है।
मस्ताना शाह बलोचिस्तानी डेरे की स्थापना 18 फरवरी 1966 को संत गुरबख्श सिंह मैनेजर साहिब ने की थी। अनुयायियों की संख्या बढ़ने के साथ डेरे का भी विस्तार हुआ। 1989 में दिल्ली में सच्चा सौदा रूहानी सत्संग ट्रस्ट के नाम से एक ट्रस्ट की स्थापना की गई। 1991 में मैनेजर साहिब ने वकील साहब को हरियाणा के मंडी डबवाली में सत्संग आयोजित करने के लिए कहा। मैनेजर साहिब के निधन के बाद, 1998 से वकील साहब डेरा जगमालवाली के गद्दी पर विराजमान थे।