वक़्त
वक़्त बडा बलवान है,
इसके आगे झुके बडे-बडे पहलवान हैं।
वक़्त कभी ऊंचाईयां बुलंद कराता है,
तो कभी बन जाते शमशान हैं।
वक़्त नहीं बदलता रिश्तों के साथ,
रिश्ते बदल जाते हैं वक़्त के साथ।
वक़्त का पता नहीं चलता अपनों के साथ,
अपनों का पता चलता है वक़्त के साथ।
वक़्त बदलते भी देर नहीं लगती,
पलक झपकते तकदीर बदलती।
वक़्त जब करता वफा,
हम भी औरों के प्यारे जमीं पर उतरे सितारे होते।
वक़्त जब बुरा आता है तो,
गैर तो गैर अपने भी कोसों दूर सिधारे होते।
वक़्त मजबूर करता है कुछ भी कर गुजरने के लिए।
वक़्त की नजाकत है सिर उठाने और सिर झुकाने के लिए।
वक़्त का मारा हुआ दर-दर ठोकरें खाने को मजबूर होता है।
वक़्त का उभारा हुआ शान और शौकत से मदचूर होता है।
वक़्त सब कुछ वही कराता है जो उस खुदा को मंजूर होता है।
वक़्त के साथ ‘वर्मा’ दोस्ती करलो
यही दुनियां का दस्तूर होता है।
लेखक
डॉ सी पी वर्मा
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